❤श्री राधिका वृन्दावनचन्द्र❤
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श्रीनाथ जी को ध्यान मेरे निशदिना री माई । मेरे मन के मेहेल प्रीतिकुंज जामे जादोराई ।शामरे बरन कोमल चरन नख देखे चकचोंधी होत, पायन उपर पेंजनी सो विविध जो बनाई ॥१॥दाहिने पद पद्म आली ताते पग टेढो धरत ऐसे चरण सुख करण है सदा दुखदाई ॥वनमाल मुक्तामाल, कंठ बनी कौस्तुभ मणि, पीतांबर की चटक तामे दामिनी छबी छाई ॥२॥बाजूबंद मुद्रिका बनी नगकी अति चमत्कार अरुण अधर मुरली मधुरेसुर वजाई ॥कमल नयन कुंडल कांति ग्रीवा प्रतिबिंब होत, आनंद भर्यो मुखारविंद रह्यो मुसकाई ॥३॥मोर मुकुट लटक चटक घूंघरवारे अलक झलक , किये चंदनखोर डगमगी चाल सुंदरताई ।कहि भगवान हित रामराय प्रभु निरख भयो बिहाल श्रीगुपाल रसना रटलाई ॥४॥
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