ॐ विष्णवे नमः

 
ॐ विष्णवे नमः
हरि तुम हरो जन की भीर। द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढायो चीर॥ भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर। हिरणकश्यपु मार दीन्हों, धरयो नाहिंन धीर॥ बूडते गजराज राखे, कियो बाहर नीर। दासि 'मीरा लाल गिरिधर, दु:ख जहाँ तहँ पीर॥
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