❤❤श्री कुंजबिहारी❤❤

 
❤❤श्री कुंजबिहारी❤❤
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नटवर-बेष धरे ब्रज आवत । मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, कुटिल अलक मुख पर छबि पावत ॥ भृकुटी बिकट नैन अति चंचल, इहिं छबि पर उपमा इक धावत । धनुष देखि खंजन बिबि डरपत, उड़ि न सकत उड़िबै अकुलावत ॥ अधर अनूप मुरलि-सूर पूरत, गौरी राग अलापि बजावत । सुरभी-बृंद गोप-बालक-संग, गावत अति आनंद बढ़ावत ॥ कनक-मेखला कटि पीतांबर, निर्तत मंद-मंद सुर गावत । सूर स्याम-प्रति-अंग-माधुरी, निरखत ब्रज-जन कैं मन भावत ॥
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shwetashweta
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